ईसा ने समझाया सच्चे दान का महत्व
एक बार प्रभु ईसा येरुशलम के चर्च में गए। वहां एक संदूकची रखी हुई थी, जिसमें लोग अपनी श्रद्धानुसार सोना, चांदी, सिक्के इत्यादि डाला करते थे। इस धन को गरीबों के सहायतार्थ खर्च किया जाता था।
ईसा ने देखा कि धनी लोग अपनी-अपनी योग्यतानुसार बड़े अभिमान के साथ सबको दिखा-दिखाकर उसमें पैसा डाल रहे हैं, जबकि आम इनसान और गरीब लोग बिना किसी को दिखाए या बताए सहज रूप से सिक्के के रूप में अपने श्रद्धासुमन उसमें चढ़ा रहे हैं।
इतने में एक विधवा वहां आई और लोगों की नजरें बचाकर उसने उस संदूकची में दो पैसे डाले।
उपस्थित जनसमूह में से एक व्यक्ति बोला- 'यह कैसे मान लिया जाए या समझ लिया जाए कि अधिक धन दान करने वाला व्यक्ति अपने मन के अनुसार दान नहीं कर रहा है?'
ईसा मसीह ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और कहा- 'मैंने यह कभी नहीं कहा कि अधिक दान देने वाला व्यक्ति अपने मन के अनुसार दान नहीं करता, मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूं कि दान से ज्यादा महत्वपूर्ण उसके पीछे की भावना होती है। अगर कोई दिखावे के लिए दान कर रहा है तो उसे उत्तम दान की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है।'
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