Sunday, 25 November 2012

भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि



भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि

भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।
भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।


भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
ऊं नमः शिवाय
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।

बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-
ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं
भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं(अपना नाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅूं, भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें'' इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।
शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो,
बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं भूतो भविष्यति
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग तो बना है और ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा
भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक' अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिवपूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली रही है इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।
शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है
पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिये
हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-
1 ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः
ऊं नमः शंभवाय मयोभवाय नमः शंकराय, मयस्कराय नमः शिवाय शिवतराय च।
इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी कर सकते हैं पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ ऊं नमः शिवाय ' मंत्र
विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथ पूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है इनमें से कुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-
सहस्रधाराः-
जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है
घी
की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है
दूध
की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए
दूध
में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है
गंगाजल
की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है
सरसों
के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है
सुगंधित
द्रव्यों यथा इत्र
, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से कुछ के विषय में निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-
सहस्राभिषेक
एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है
एक
हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है
एक
हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है
एक
हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है
एक
हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति विष्णुकृपा प्राप्त होती है
एक
हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है
एक
हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है
लक्षाभिषेक
एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है
एक
लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक
लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक
लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक
लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है
एक
लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है
एक
लाख तुलसीदल चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक
लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है
बेलपत्र
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग को लिंग की ओर रखकर चढाया जाता है।इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,
त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम त्रिधायुधम।
त्रिजन्म
पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥
उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए
शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-
पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
माता
पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथा पूजन अधूरा रह जायेगा।
रुद्राक्ष
की माला हो तो धारण करें।
भस्म
से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
शिवलिंग
पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता
, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
शिवमंदिर
की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
केवडा
तथा चम्पा के फूल चढायें।
पूजन
काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।
शिव को प्रसन्न करने के आसान उपाय

भगवान शिव को आशुतोष (तत्काल प्रसन्न होने वाले) कहा गया है। वे जल व बिल्वपत्र से ही प्रसन्न होने वाले देवता हैं। शिव महापुराण में कहा गया है कि -

त्रि दलम्‌ त्रि गुणाकारम्‌, त्रि नेत्रम्‌ च त्रयायुधम्‌।
त्रि जन्म पाप संहारम्‌, एक बिल्व शिर्वापणम्
FILE
अर्थात् - तीन दलों (पत्तियों) से युक्त एक बिल्वपत्र जो हम शिव को अर्पण करते हैं, वह हमारे तीन जन्मों के पापों का नाश करता है तथा त्रिगुणात्मक शिव की कृपा भौतिक संसाधनों से युक्त होती है। अत: श्रावण मास में भगवान भोले को इनके अर्पण करने से अधिक फल प्राप्त होता है।

श्रावण माह के अंतर्गत प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। जिसमें :-

* प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी चढ़ाना शुभ होता है।
* दूसरे सोमवार को सफेद तिल्ली एक मुट्ठी चढ़ाया जाता है।
* तीसरे सोमवार को खड़े मूंग की एक मुट्ठी चढ़ाना चाहिए।
* चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी चढ़ाने का महत्व है।
* ...और श्रावण मास में अगर पांचवां सोमवार भी आ जाता है, तो सतुआ चढ़ाने का महत्व हैं।

भगवान शिव का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।


Saturday, 24 November 2012

Tulsi Vivah

          Tulsi Vivah
The Tulsi plant is considered as a most sacred plant by the Hindus as it is regarded to be an incarnation of Mahalaxmi who was born as Vrinda.Even the Tulsi plant itself, known as the embodiment of Lord Vishnu–The Preserver, represents conscious and holistic sustainabilit
The very name Tulsi, that which cannot be compared, the "incomparable one", has spiritually uplifting qualities. Tulsi has been found to possess extraordinary powers of healing.
The tulsi plant is held sacred by the Hindus as it isregarded to be an incarnation of Mahalaxmi who was born as Vrinda. Tulsi was married to demon king Jalandhar. She prayed to Shri Vishnu that her demon husband should be protected, with the result no God was able to harm him. However on the request of the other Gods, Shri Vishnu took the form of Jalandhar and stayed with the unsuspecting Tulsi. When the truth emerged after Jalandhar’s death, Vrinda cursed Shri Vishnu and turned him to stone (Saaligram) and collapsed. From her body emerged the tulsi plant. That is why Vishnu puia is considered incomplete without tulsi leaves.
The very name Tulsi, that which cannot be compared, the "incomparable one", has spiritually uplifting qualities. Tulsi has been found to possess extraordinary powers of healing.

Preparations for the Puja
•Tulsi pot
•Bright coloured odni forTulsi plant
•Sugar cane
•Moli, deepak
•Food rice, puri, sweetpotato, kheer, red pumpkin, aanvla, tamarind
•Suhaag pitari containing saree, blouse, mahendi, kaazal (kohl), sindoor, bangles, bindi etc.
•Dishes
Vidhi / Method of Performing the Puja
Tulsi pot / Vrinda devi is coloured and decorated as a bride. Four pieces of sugarcane are tied around the Tulsi pot with moli and bright coloured odni is draped on the Tulsi plant.
At midday, a full meal consisting of rice, puri, sweet potato kheer, red pumpkin vegetable cooked with pieces of sugarcane, amla and tamarind is offered to Tulsi Vrindavan.
Tulsi Vivah ceremony takes place in the late evening. The Pundit andhousewives performs the ceremony. Tulsi Devi takes the sacred phera with Saaligram. The Punditji brings the Saaligraam with him. In a basket- saree, blouse, mehendi, kaajal, sindoor, bangles, etc. i.e. suhaag related things are kept. This suhaag pilari is offered to Tulsi Devi and later given to a Brahmini.Various poha dishes are offered to Shri Vishnu. Then Prasad is distributed among family members and friends.
Vivaah Rituals
Marriage of Shalagrama and Tulasi
•One must plant the Tulsi plant at home or forest and after three years one may perform her marriage.
•The Auspicious time to perform her marriage according to the Hindu tradition is:
•When the sun is moving in the north, Jupiter and Venus are rising, in the month of Kartika, from the Ekadashi to the full moon in the month of Magha, and when constellations that are auspicious for marriage appear, especially the full moon day.
•One should first arrange a place for sacrifice (yajna-kunda) under a canopy (mandapa)
•Then after performing shanti-vidhana, one should install sixteen goddesses, and do the shraddha ceremony for his female maternal ancestors
•For the Vivah, one must call four Brahmins well read in Vedas, and appoint one of them as priest, one as Brahma, one as rishi and the fourth one as Acharya.
•One should establish an auspicious water pot (mangala-ghat) under that mandapa according to the Vaishnava rituals followed by establishment of an attractive shalagrama-shila (Lakshmi-Narayana).
•During dusk one should install a golden deity of Narayan and a silver idol of Tulsi.
•With vasa-shanta mantra two cloths should be tied together, with yadavandha mantra the marriage bracelets (kangana) should be tied on the wrists, and with ko' dat mantra the marriage should be consecrated
•Finally the host along with the acarya, rishi, and others should make nine offerings in the yajna-kunda.
•After all the marriage rites and rituals have been successfully performed, the host along with wife and relatives should take a Parikrama around the Tulsi plant and offer food to Brahmins and other relatives.
Significance
Tulsi Vivah is conducted on the day after Kartik Ekadashi (the eleventh bright day of the new moon, Amavasya). According to Hindu mythology, Tulsi is ceremonially married to Lord Vishnu on this day. The festival continues for five days and concludes on the full moon day.
Tulsi Vivah is considered very auspicious especially among Hindus. This day is considered to be the beginning of the marriage season in India. That is the long awaited season of marriages in Hindu community starts from the day of Tulsi Vivah, and thus is not only sacred but long awaited as well.
The festival of Tulsi Vivah is celebrated in each and every household of Goa. There is a custom associated with Tulsi Vivah according to which, womenfolk engage themselves in preparation of Exquisite sweet dishes and these collection of sweets is sent to the daughters home, along with the Puja ingredients from the parental house.
Along with Tulsi, the plants of amla, sugarcane and tamarind are planted.
Tulsi Vivah Date
Tulsi Vivah refers to an ages old ritual of marrying Tulsi plant to Lord Vishnu. According to the traditional Hindu calendar, it is celebrated in the Kartik month.
Tulsi Vivah is performed by some communities on the Ekadasi day after Amavasi (new moon) in Kartik month and by some communities on the Dev Diwali day or the full moon day in Kartik Month.
The ritual of Tulsi Vivah is performed and celebrated with immense glory and joy across different temples and households. This ritual is mentioned in age old Puranas and scriptures.
The festival of Tulsi Vivah marks the beginning of the Marriage season in India, especially in the Hindu tradition.

Friday, 23 November 2012

How to Defrost a Freezer


How to Defrost a Freezer



Over time a thick layer of ice can build up on the inside of freezers. This reduces the efficiency of the appliance, adds to your electricity bill and also makes it tricky to get things in and out. Here is how to defrost a freezer as quickly and painlessly as possible.

Steps

  1. 1
    Switch off the freezer. Unplug the freezer from the power supply.

  2. 2
    Empty the freezer. Remove all the food from the freezer.

    • To prevent it from thawing, wrap it in and place it in a cool bag. Store this in the coldest area of your house.
  3. 3
    Remove any drawers as you go.

  4. 4
    Take out the ice cube trays.

  5. 5
    Prevent a puddle. Put old newspapers around the base of the freezer, this will soak up the water as the ice melts. Old newspapers are ideal for this job as they can slide under the freezer and are extremely absorbent.

  6. 6
    Facilitate the thaw.Fill a bowl with Boil Water and place it by the freezer.

  7. 7
    Dip a cloth in the hot water and dab it onto the ice covered shelves. This accelerates the melting process.

  8. 8
    Run the hot cloth along the top seal of the freezer door, this area often traps food which has fallen down from the fridge.

  9. 9
    Wash the removables.Take the drawers to the sink. Rinse with hot water to melt any remaining ice. Fill the sink with hot water and squirt in a little washing up detergent. Use a household sponge to wash the drawers one at a time.

  10. 10
    Wash the ice cube trays too. Then rinse everything and leave to dry.

  11. 11
    Check the progress. After 15 to 20 minutes return to the freezer.

    • Knock out any lumps of ice onto the newspaper. Roll up the now soggy newspaper sheets and discard, then lay out a dry layer.
  12. 12
    Pour another bowl of just boiled water.

    • Dab the hot water over any areas which are still very icy.
    • Refill the bowl with hot water and place it on a shelf under the areas with most ice. The warm steam will rise and defrost this stubborn layer.
  13. 13
    Leave the freezer until it has completely defrosted; this could take a couple of hours.

  14. 14
    Clean the freezer. Fill a bowl with hot water.

  15. 15
    Squirt in a little detergent. Dip in a cloth and wipe down the inside of the freezer.

  16. 16
    Don't forget the seal as this is where food will often get trapped. Not only is it unhygienic, but also prevents the door from closing properly.

  17. 17
    Use a metal scourer to clean it thoroughly all the way around.

  18. 18
    To rinse, spray the inside of the freezer with water.

  19. 19
    Dry off with kitchen towel.

  20. 20
    Replace the items that were removed. Your freezer will now look as good as new. Put the drawers back in. Unwrap the food and place back in the freezer. Close the door and finally switch the appliance back on.
  21. 21
    Finished.