Thursday 13 December 2018

दान की महिमा


दान की महिमा


(1)दान से वस्तु घटती नहीं बल्कि बढ़ती है।

(2)जब घर में धन और नाव में पानी आने लगे, तो उसे दोनों हाथों से निकालें, ऐसा करने में बुद्धिमानी है, हमें धन की अधिकता सुखी नहीं बनाती।संत कबीर
(3)सैकड़ों हाथो से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बांटो।अथर्ववेद
(4)सज्जनों कि रीति यह है कि कोई अगर उनसे कुछ मांगे तो वे मुख से कुछ न कहकर, काम पूरा करके ही उत्तर देते हैं।कालिदास
(5)जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोउ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम।कबीर
(6)तुम्हारा बायाँ हाथ जो देता है उसे दायाँ हाथ ना जानने पाए।बाइबिल
(7)दान देकर तुम्हे खुश होना चाहिए क्योंकि मुसीबत दान की दीवार कभी नहीं फांदती।हजरत मोहम्मद
(8)सबसे उत्तम दान यह है कि आदमी को इतना योग्य बना दो कि वह बिना दान के काम चला सके।तालमुद
(9)दान के लिए वर्तमान ही सबसे उचित समय है।
(10)युधिस्तर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है।महाभारत
(11)विनम्र भाव से ऐसे दान करना चाहिए जैसे उसके लेने से आप कृतज्ञ हुए।डा. के. के. अग्रवाल
(12)सब दानों में ज्ञान का दान ही श्रेष्ठ दान है।मनुस्मृति
(13)दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है।भर्तृहरि
(14)त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज।विनोबा भावे
(15)जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने को उतावला हो उठता है, वह अहंकार एवं आडम्बर मात्र रह जाता है।हुट्टन
(16)इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
(17)जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं।
(18)जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए।
(19)जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है।
(20)अभय-दान सबसे बडा दान है।स्वामी विवेकानन्द
(21)दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है।कालिदास
(22)संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है।आचार्य श्रीराम शर्मा
(23)पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं।वाल्मीकि
(24)इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए दान का फल अगले जन्म में मिलता है।गुरुवाणी
(25)हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं।चाणक्य
(26)अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है।अज्ञात
(27)अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।धम्मपद
(28)दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।तुकाराम
(29)तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवींद्रनाथ ठाकुर
(30)अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है।सूत्रकृतांग
(31)तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे।मनुस्मृति
(32)शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर मेंशिव को खोजा करता है।जाबालदर्शनोपनिषद
(33)जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन?वाल्मीकि
(34)पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता।चाणक्यनीति
(35)अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।धम्मपद
(36)त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है।विनोबा भावे
(37)सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है।स्वामी रामतीर्थ 

(38)तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(39)जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो।नवविधान
(40)सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।रामचंद्र शुक्ल
(41)दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं।स्थानांग
(42)दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है।जातक
(43)प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है।विमानवत्थु
(44)तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञकरके असत्य न बोलें। पीड़ित होकर भी गुरु की निंदा न करें। और दान देकर उसकी चर्चा न करें।मनुस्मृति
(45)निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।जातक
(46)सच्चा दान दो प्रकार का होता है – एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।रामचंद्र शुक्ल
(47)मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान – यह सज्जनों का सनातन धर्म है।वेदव्यास
(48)दान, भोग और नाश – ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।भर्तृहरि
(49)दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है।तुकाराम
(50)तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(51)सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।रामचंद्र शुक्ल
(52)समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है।भास
(53)तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।मनुस्मृति
(54)दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं।विनोबा भावे
(55)क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए।वेदव्यास
(56)तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे।मनुस्मृति
(57)निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।जातक
(58)दान का भाव एक बड़ा उत्तम भाव है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाज में दान-पात्रों का एक वर्ग पैदा कर दिया जाए।संपूर्णानंद
(59)समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है।चाणक्यनीति
(60)देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता।ऋग्वेद
(61)तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवींद्रनाथ टैगोर
(62)मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान- यही सज्जनों का धर्म है।वेदव्यास
(63)अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है।अज्ञात
(64)अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।धम्मपद
(65)शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है।क्षेमेंद्र
(66) सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है।स्वामी रामतीर्थ

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