Sunday, 23 December 2018

Simple Ways to Water Conservation



We use water daily to water plants, stay alive, wash clothes, provide power, control fire and for many other things. Water is available in plenty on the earth then why we need to conserve water? The reason behind it is that the people on the earth use fresh water faster then it can be naturally replenished. To provide fresh and clean water to people, it is cleaned at water treatment plants and from there it is supplied to residential households for there daily needs. So, we need to conserve water to minimize its wastage. When we save water we are also saving energy because the less water we use, the less energy will be used for pumping and treating water. On the other hand if you less hot water, it will save you on water heating.

What Can I Do To Conserve Water?

Apart from using less water for your daily needs, there are other plenty of ways to conserve water. Just look at the list below as how you can save water by adopting these techniques.

Ways to conserve water in kitchen
When washing dishes by hand, fill the sink basin or a large container and rinse when all of the dishes have been soaped and scrubbed.
Don’t let the faucet run while you clean vegetables. In-fact, clean them in the pan of clean water.
Always have the bottle of clean water in the refrigerator, This will help in reducing the running tap water.
Turn off water faucets tightly so they don’t drip.
When you wash dishes by hand don’t left the water running for rinsing.
Re-use the water left over from cooked or steamed foods to start a scrumptious and nutritious soup.



Ways to conserve water in bathroom
Don’t take lengthy showers. Though it may be comforting but it may lead to wastage of water.
Avoid flushing the toilet unnecessarily. Dispose of tissues, insects and other such waste in the trash rather than the toilet.
Don’t let water run while shaving or washing your face. Brush your teeth first while waiting `for water to get hot, then wash or shave after filling the basin.
Keep a bucket in the shower to catch water as it warms up or runs. Use this water to flush toilets or water plants.
Check faucets and pipes for leaks
If you’re taking a shower, don’t waste cold water while waiting for hot water to reach the shower head. Catch that water in a container to use on your outside plants or to flush your toilet.
Install a low water consumption toilet like the Toto cst744s drake toilet. Low water toilets can drastically help reduce water waste.

Ways to conserve water outside

Water your lawn and garden in the morning or evening when temperatures are cooler to minimize evaporation. You can even use a hose water timer to make sure you aren’t using too much water.
Collect the water you use for rinsing fruits and vegetables, and then reuse it to water houseplants.
Collect water from your roof using a rainwater tank to water your garden.

Rather than following a set watering schedule, check for soil moisture two to three inches below the surface before watering.
Water only when necessary. More plants die from over-watering than from under-watering.
Wash your pets outdoors in an area of your lawn that needs water.
If you accidentally drop ice cubes when filling your glass from the freezer, don’t throw them in the sink. Drop them in a house plant instead.
Ask your plumber if he could re-route your gray water to trees and gardens rather than letting it run into the sewer line. Check with your city codes, and if it isn’t allowed in your area, start a movement to get that changed.
When shopping for a new clothes washer, compare resource savings among Energy Star models. Some of these can save up to 20 gallons per load, and energy too.
Collect the water you use for rinsing fruits and vegetables, and then reuse it to water houseplants.

जल संरक्षण



21वीं सदी के पहले दशक के पूरे विश्व में दृष्टि डालें तो यह सत्य उभरता है कि इस दशक में पूरी मानवता कई प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रही है। कभी बर्फबारी, कभी बाढ़, कभी समुद्री तूफान, कभी भूकम्प, कभी महामारी तो कभी जल संकट से पूरी मानवता त्रस्त है। बढ़ती आबादी के सामने सबसे बड़े संकट के रूप में जल की कमी ही उभर रही है। पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह नतीजा है कि आज पूरी जनसंख्या हेतु पर्याप्त स्वच्छ जल के संकट से पूरा विश्व गुजर रहा है।

भारत में उपलब्ध जल संसाधन की दृष्टि से आकलन करें तो यह बात सामने आती है कि 2001 में प्रति व्यक्ति 1800 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध था जो 2050 ई. में घटकर 1000 क्यूबिक मीटर हो जाएगा। भारत इस समय कृषि उपयोग हेतु तथा पेयजल के गंभीर संकट से गुजर रहा है और यह संकट वैश्विक स्तर पर साफ दिख रहा है। हर विकसित और विकासशील देश इस संकट को दूर करने हेतु हर तरह से उपाय पर विचार कर रहा है। इस संकट के निवारण हेतु हमें तीन स्तरों पर विचार करना होगा-पहला यह कि अब तक हम जल का उपयोग किस तरह से करते थे? दूसरा भविष्य में कैसे करना है? तथा जल संरक्षण हेतु क्या कदम उठाए? पूरी स्थिति पर नजर डालें तो यह तस्वीर उभरती है कि अभी तक हम जल का उपयोग अनुशासित ढंग से नहीं करते थे तथा जरूरत से ज्यादा जल का नुकसान करते थे। संरक्षण की जागरूकता रहने से इस स्थिति में जल संरक्षण हेतु हमें कई कदम उठाने होंगे जो इस प्रकार हैं-

1. हर नागरिक में जल संरक्षण हेतु जागरूकता लानी होगी।
2. हर नागरिक शावर की जगह बाल्टी में पानी भरकर स्नान करें।
3. सेविंग करते समय नल बंद रखें।
4. बर्तन धुलते समय नल के स्थान पर टब का प्रयोग करें।
5. उत्तराखंड जल संसाधन के अनुसार, ‘‘टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में पानी भरकर रख देने से हर बार एक लीटर जल बचाया जा सकता है।
6. गाँव और शहरों में पहले तालाब हुआ करते थे जिनमें जल एकत्र रहता था जो न केवल पानी के स्तर को आस-पास बचाये रखता था बल्कि दैनिक उपयोग के काम आता था। आज गाँवों और शहरों के तालाबों को पाट कर घर बना लिये गए हैं। अतः जरूरी है कि जल संरक्षण हेतु गाँव और शहरों में तालाब फिर से खोदे जाएँ।
7. गंदे जल का सिंचाई में उपयोग करके भी जल संरक्षण किया जा सकता है।
8. वर्षा का जल छत पर संरक्षण कर उसका उपयोग करना। इसलिये छत पर पानी टंकी बनाना होगा।
9. सार्वजनिक स्थल के नल की टोटी अक्सर खराब रहती है उसकी मरम्मत कर तथा लोगों में जागरूकता लाकर हजारों लीटर पानी संरक्षित किया जा सकता है।
10. पर्यावरण के प्रति जागरूकता जरूरी है क्योंकि पर्यावरण संतुलन का सकारात्मक प्रभाव जल संरक्षण पर पड़ता है। कटते वृक्षों के कारण भूमि की नमी लगातार कम हो रही है जिससे भूजल स्तर पर बुरा असर पड़ रहा है। अतः जरूरी है कि वृक्षारोपण कार्यक्रम हेतु जागरूकता लाई जाए।
11. नदियों के जल में गंदा पानी कदापि नहीं छोड़ा जाय जिससे जरूरत पर उस जल का प्रयोग पीने तथा अन्य उपयोगों हेतु किया जा सके।
12. ‘जल संरक्षण’ विषय को व्यापक अभियान की तरह सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों पर प्रचारित करने की जरूरत है। जिससे छोटे, बड़े सभी इस विषय की गंभीरता को समझें और इस अभियान में अपनी भूमिका अदा करें।
13. जल संरक्षण हेतु केंद्र और राज्य सरकारें कानून बनाएँ।
14. विद्यालय और महाविद्यालयों में निरंतर प्रचार-प्रसार की जरूरत है। जिससे युवा पीढ़ी समय रहते इसकी गंभीरता को अच्छी तरह से समझ सकें।
15. जल संरक्षण हेतु रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक का सहारा लेना चाहिए। यह तकनीक पानी की कमी से निपटने का तरीका भर नहीं है, कई बार तो ऐसा देखने में आया है कि इस तकनीक से इतना जल एकत्र हो जाता है कि दूसरे स्रोत की आवश्यकता ही नहीं पड़ती और यहाँ तक कि दूसरे को पानी उधार देने में सक्षम हो जाते हैं। इस तरह का उदाहरण हमें केरल में जिला पंचायत के कार्यालय में देखने को मिला है। सूत्रों से ज्ञात होता है कि 9 अगस्त, 2005 से केरल के कासरागोड जिला पंचायत का सरकारी भवन न तो बोरवेल पर निर्भर है न तो जलापूर्ति या भूजल पर, पानी की जरूरतों के लिये इसका भरोसा सिर्फ बारिश से मिले पानी पर है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अपनी आवश्यकता का सारा पानी यह छत पर एकत्र वर्षा जल से हासिल कर लेता है।





इस परियोजना को देखने पूरे देश से लोग आते हैं। अगर स्वजलधारा कार्यालय या कोई दूसरी संस्था इस संदेश का ठीक से प्रचार-प्रसार करें तो रेनवाटर हार्वेस्टिंग के बारे में जागरूकता फैलाने में ज्यादा मदद मिल सकती है। आज इस तकनीक का उपयोग धीरे-धीरे सभी जागरूक नागरिक करने लगे हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने एक मुकदमें में फैसला देते हुए कहा है कि तालाब, पोखर, गड़ही, नदी, नहर, पर्वत, जंगल और पहाड़ियों आदि सभी जलस्रोत पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं। इसलिये पारिस्थितिकी संकटों से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिये इन प्राकृतिक देनों की सुरक्षा करना आवश्यक है ताकि सभी संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिए गए अधिकारों का आनंद ले सकें। इतना ही नहीं अदालत ने राज्य सरकार को प्रत्येक गाँव में एक विशेष जाँच दल नियुक्त करने का भी आदेश दिया। जलस्रोतों पर हुए अतिक्रमण हटाने का भी निर्देश हाईकोर्ट ने दिया साथ ही निर्णय में यह भी कहा गया है कि प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक स्थानों पर अन्यत्र जमीन आवंटित कर दिया जाए। प्रत्येक झील तालाब या अन्य स्रोत के आस-पास किसी भी प्रकार के सरकारी या निजी निर्माण कार्य की अनुमति तब तक नहीं दी जाए जब तक कि यह सुनिश्चित न हो जाए कि वे निर्माण जल स्रोतों पर अतिक्रमण नहीं करते।

निष्कर्षतः ‘जल संरक्षण’ आज के पूरे विश्व की मुख्य चिंता है। प्रकृति हमें निरंतर वायु, जल, प्रकाश आदि शाश्वत गति से दे रही है लेकिन हम विकास की आंधी में बराबर प्रकृति का नैसर्गिक संतुलन बिगाड़ते जा रहे हैं। जल संरक्षण हेतु समय रहते चेत जाने की जरूरत है क्योंकि-

‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए न उबरे, मोती, मानुस, चून’।

Thursday, 13 December 2018

दान की महिमा


दान की महिमा


(1)दान से वस्तु घटती नहीं बल्कि बढ़ती है।

(2)जब घर में धन और नाव में पानी आने लगे, तो उसे दोनों हाथों से निकालें, ऐसा करने में बुद्धिमानी है, हमें धन की अधिकता सुखी नहीं बनाती।संत कबीर
(3)सैकड़ों हाथो से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बांटो।अथर्ववेद
(4)सज्जनों कि रीति यह है कि कोई अगर उनसे कुछ मांगे तो वे मुख से कुछ न कहकर, काम पूरा करके ही उत्तर देते हैं।कालिदास
(5)जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोउ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम।कबीर
(6)तुम्हारा बायाँ हाथ जो देता है उसे दायाँ हाथ ना जानने पाए।बाइबिल
(7)दान देकर तुम्हे खुश होना चाहिए क्योंकि मुसीबत दान की दीवार कभी नहीं फांदती।हजरत मोहम्मद
(8)सबसे उत्तम दान यह है कि आदमी को इतना योग्य बना दो कि वह बिना दान के काम चला सके।तालमुद
(9)दान के लिए वर्तमान ही सबसे उचित समय है।
(10)युधिस्तर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है।महाभारत
(11)विनम्र भाव से ऐसे दान करना चाहिए जैसे उसके लेने से आप कृतज्ञ हुए।डा. के. के. अग्रवाल
(12)सब दानों में ज्ञान का दान ही श्रेष्ठ दान है।मनुस्मृति
(13)दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है।भर्तृहरि
(14)त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज।विनोबा भावे
(15)जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने को उतावला हो उठता है, वह अहंकार एवं आडम्बर मात्र रह जाता है।हुट्टन
(16)इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
(17)जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं।
(18)जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए।
(19)जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है।
(20)अभय-दान सबसे बडा दान है।स्वामी विवेकानन्द
(21)दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है।कालिदास
(22)संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है।आचार्य श्रीराम शर्मा
(23)पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं।वाल्मीकि
(24)इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए दान का फल अगले जन्म में मिलता है।गुरुवाणी
(25)हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं।चाणक्य
(26)अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है।अज्ञात
(27)अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।धम्मपद
(28)दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।तुकाराम
(29)तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवींद्रनाथ ठाकुर
(30)अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है।सूत्रकृतांग
(31)तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे।मनुस्मृति
(32)शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर मेंशिव को खोजा करता है।जाबालदर्शनोपनिषद
(33)जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन?वाल्मीकि
(34)पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता।चाणक्यनीति
(35)अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।धम्मपद
(36)त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है।विनोबा भावे
(37)सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है।स्वामी रामतीर्थ 

(38)तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(39)जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो।नवविधान
(40)सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।रामचंद्र शुक्ल
(41)दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं।स्थानांग
(42)दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है।जातक
(43)प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है।विमानवत्थु
(44)तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञकरके असत्य न बोलें। पीड़ित होकर भी गुरु की निंदा न करें। और दान देकर उसकी चर्चा न करें।मनुस्मृति
(45)निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।जातक
(46)सच्चा दान दो प्रकार का होता है – एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।रामचंद्र शुक्ल
(47)मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान – यह सज्जनों का सनातन धर्म है।वेदव्यास
(48)दान, भोग और नाश – ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।भर्तृहरि
(49)दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है।तुकाराम
(50)तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(51)सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।रामचंद्र शुक्ल
(52)समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है।भास
(53)तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।मनुस्मृति
(54)दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं।विनोबा भावे
(55)क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए।वेदव्यास
(56)तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे।मनुस्मृति
(57)निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।जातक
(58)दान का भाव एक बड़ा उत्तम भाव है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाज में दान-पात्रों का एक वर्ग पैदा कर दिया जाए।संपूर्णानंद
(59)समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है।चाणक्यनीति
(60)देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता।ऋग्वेद
(61)तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।रवींद्रनाथ टैगोर
(62)मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान- यही सज्जनों का धर्म है।वेदव्यास
(63)अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है।अज्ञात
(64)अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।धम्मपद
(65)शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है।क्षेमेंद्र
(66) सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है।स्वामी रामतीर्थ

Monday, 3 December 2018

mCent mobile browser download and get unlimited Free Recharge

mCent is a perfect place for mobile users to get free recharge very easily. You just have to discover or download apps on their app to get unlimited Free Recharge. They provide a very easy interface to users to strat earning free recharge easily and quickly. This app is popular for its rewards not only in India but also all over the world.

On mCent, there is no limit of free recharge. Users can earn an enormous amount of recharge quickly. They provide many ways to earn free bucks from their platform. The more you earn, the more they earn. So, the mCent team tries to provide as many offers as they can for you.

First of all, you have to register on their app to get started. Then, just start checking apps listed on their app and start downloading them one by one. They have separate rates for different apps. So, if you are downloading UBER and AMAZON app through Mcent, then you will get a different reward for Amazon and another reward for Uber. You just have to download the respective app, open and use it. Then, Mcent team will give money to the wallet.

There is also another way to earn free recharge on this application i.e. Refer and Earn. Referring friends and making free bucks for recharge is the simplest and most famous on the internet. You can refer your friends to the mCent app and earn free recharge. There is no limit on referring friends. So, you can get the unlimited amount of bucks for free recharge just by referring your friends and family to download and use MCENT.

Now, they allow you to transfer money to another user’s account. So, you can gift free recharge to your friends or family quickly. You can also chat with your friends within the app. So, it is a free recharge app with impressive features. So, start using it by going through below steps.


So what are you waiting for Join https://browser.mcent.com/r/LzoiYjrBQKu6Y2xewALRxg

Phone maker Gionee in trouble

It appears another Chinese smartphone maker is getting squeezed out of the picture.

Last week, a report circulating said that Gionee’s chairman Liu Lirong lost 10 billion yuan (US$1.44 billion) of the company’s money when gambling on the US island of Saipan. Liu denied the claim in an interview with state-owned Securities Daily, saying the number is too big to be true. When the state media asked how much he actually lost, he said, “About one billion.” (He didn’t specify whether that was yuan or US dollars.)

He also admitted that he has “borrowed” company funds, and said the amount of money he took will be made public when the company starts bankruptcy reorganization next month.

You’d be forgiven for not having heard of Gionee, because it has been absent from the international market. Started in 2002, it made its name in China in the feature phone era, targeting the high-end market.

But it has been losing ground since moving into smartphones and has also expanded to producing budget handsets. There, it’s facing fierce competition from the likes of Vivo and Oppo, who dominate cheap phones. Its “luxurious” M2017, launched two years ago with a 7,000 mAh battery, a wacky leather cover and costing more than US$1,000, doesn’t appear to have gained any momentum either.

The company has repeatedly run into trouble since December last year, facing hundreds of debt-related lawsuits. Liu said in the same Securities Dailyinterview that the company has been losing 200 million yuan (US$29 million) every month since 2016, attributing it to overspending on marketing.


But Gionee is far from the only one struggling to gain a foothold in China’s increasingly cutthroat smartphone market. Outside of the top six, shipments from all other smartphone vendors dropped a staggering 48 percent in the third quarter from the previous year. And that’s seeing other companies suffer, like selfie king Meitu, which just let Xiaomi take over making its smartphones. The high-profile startup Smartisan recently admitted to a cash crunch and has been sued by a supplier for owing US$650,000.

Abacus News is attempting to reach a Gionee representative – we’ll give an update if we hear back.

Test Internet Connection Speed Using Ping Command

What is ping command?

Ping (stands for Packet Internet groper) is a popular command line tool to check network related issue. Every OS has this inbuilt. And basically, it tells you how long does it take for a “data packet” to travel from your computer to a server and back to your computer. More time it takes, slower is your connection.



How does it work?

Think of it like a sonar. When you ping any server, you send the echo request (ICMP) to the target. And based on the time it took and the amount of the data that came back, you can test the reliability and speed of your connection.

Here is how you use Ping

1. Open command prompt.

If you are new to command prompt then first check out my post on different ways to open command prompt. To open the terminal on mac type in terminal in the spotlight, while linux user can use the shortcut ctrl + alt+ T.

2. Once you see the cmd or terminal window, try the following command.

a. ping localhost

This will display your computer’s name and whether you system is able to receive and send information. You will notice the time it took for sending and receiving data packets is less than 1ms. This is because we are communication to same device.

This is rarely useful but something you should know.



b. ping google.com

This one extremely useful and usually used. If this command fails i.e. there is no response from the server. Then it means either the website is down or your internet.

Now, why ping google? Well, you can ping other websites as well, but since it’s extremely rare that Google’s servers are down or slow, pinging them is the preferred way to test internet connectivity.


Detail Analysis

174.194.36.32 – IP-address of Google.com (ping is also helpful to quickly find IP address of any website)

Lost 0% – It means the ping was successful and your internet is up. No packet was lost.

Avg time = 109 mili sec– if the avg time is less than 100, the connection is Ok and over 1000 is very slow. Though, this is a bit of generalization. It can give you a good idea but it’s defiantly not a holy grail.

Destination unreachable – It probably means that there is no route b/w your computer and destination website. Problem with your network device or internet is down from your ISP

Request timed out – Means no response was received for the given packet. Possibly a slow internet connection.

For more ping option type ping and hit enter.

Ping option

If you want to ping the target continuously use the time (-t) parameter. To escape the loop use ctrl +c for both Mac and Windows.

Example ping google.com –t

If you want to send more or less than 4 requests, use -n followed by no of the count.

Example ping google.com –n 10

[Side note]

Windows sent four packets by default while MAC sent unlimited packets. To stop them in between use CTRL +C. Very useful.

If you want to send a packet data other than 32 bytes (default) use –l followed by numbers of bytes.

Example ping google.com –l 64

It not necessary that every host reply to your ping request. Sometimes pinging website like MSN and Microsoft return an error. Even tough your internet connection is good.

Sunday, 2 December 2018

नारायण-मन्त्र की महिमा

पूर्वकल्प में आरुणि नाम से विख्यात एक महान् तपस्वी ब्राह्मण थे| वे किसी उद्देश्य से तप करने के लिये वन में गये और वहाँ उपवासपूर्वक तपस्या करने लगे| उन्होंने देविका नदी के सुन्दर तटपर अपना आश्रम बनाया था|

एक दिन वे स्नान पूजा करने के विचार से नदी के तट पर गये| वहाँ स्नान करके जब वे जप कर रहे थे, उसी समय उन्होंने सामने से आते हुए एक भयंकर व्याध को देखा, जो हाथ में बड़ा-सा धनुष लिये हुए था|उसकी आँखें बड़ी क्रूर थीं| वह उन ब्राह्मण के वल्कल-वस्त्र छिनने और उन्हें मारने के विचार से आया था| उस ब्रम्हघाती को देखकर आरुणि के मन में घबराहट उत्पन्न हो गयी और वे भय से थरथर काँपने लगे, किंतु ब्राह्मण के अन्तःशरीर में भगवान् नारायण को देखकर वह व्याध डर-सा गया| उसने उसी क्षण धनुष और बाण हाथ से गिरा दिया और कहा-‘ब्रह्मन्! मैं आपको मारने के विचार से ही यहाँ आया था, किन्तु आपको देखते ही पता नहीं मेरी वह क्रूर-बुद्धि अब कहाँ चली गयी| विप्रवर! मेरा जीवन सदा पाप करने में ही बीता है| अबतक मेरे द्वारा हजारों ब्राह्मण मृत्यु के मुख में प्रविष्ट हो चुके हैं| प्रायः दस हजार साध्वी स्त्रियों को मैंने अन्त कर डाला है| अहो! ब्राह्मण की हत्या करने वाला मैं पापी पता नहीं किस गति को प्राप्त होऊँगा? महाभाग! अब आपके पास रहकर मैं भी तप करना चाहता हूँ| आप कृपया उपदेश देकर मेरा उद्धार करें|’

व्याध के इस प्रकार कहने पर उसे ब्रम्हघाती एवं महान् पापी समझकर द्विजश्रेष्ठ आरुणि ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया, परन्तु हृदय में धर्म की अभिलाषा जग जाने के कारण ब्राह्मण के कुछ न कहने पर भी वह व्याध वहीं ठहर गया| आरुणि भी नदी में स्नान कर वृक्ष के नीचे बैठे हुए तप करते रहे| इस प्रकार अब उन दिनों का नियमित धार्मिक कार्यक्रम चलने लगा| इसी प्रकार कुछ दिन बीत गये| एक दिन की बात है-आरुणि स्नान करने के लिये नदी के जल में घुसे थे, तबतक कोई भूख से व्याकुल बाघ उन शान्तस्वरूप मुनि को मारने के लिये आ पहुँचा| पर इसी बीच व्याध ने बाघ को मार डाला| उस बाघ के शरीर से एक पुरुष निकला| बात ऐसी थी-जिस समय आरुणि जल में थे और बाघ उन पर झपटा, उस समय घबराहट के कारण मुनि के मुँह से सहसा ‘ॐ नमो नारायणाय’ यह मन्त्र निकल पड़ा| तब तक बाघ के प्राण कण्ठगत ही थे, अतः उसने यह मन्त्र सुन लिया| प्राण निकलते समय केवल इस मन्त्र को सुन लेने से वह एक दिव्य पुरुष के रूप में परिणत हो गया| तब उसने कहा-‘द्विजवर! जहाँ भगवान् विष्णु विराजमान हैं, मैं वहीं जा रहा हूँ| आपकी कृपा से मेरे सारे पाप धुल गये| अब मैं शुद्ध एवं कृतार्थ हो गया|’

इस प्रकार उस पुरुष के कहने पर विप्रवर आरुणि ने उससे पूछा-‘नरश्रेष्ठ! तुम कौन हो?’ तब वह पूर्वजन्म की आप-बीती कहने लगा-‘मुने! मैं पूर्वजन्म में ‘दीर्घबाहु’ नाम से प्रसिद्ध एक राजा था| समस्त वेद और सम्पूर्ण धर्मशास्त्र मुझे सम्यक् प्रकार से अभ्यस्त थे| अन्य शास्त्र भी मुझसे अपरिचित नहीं थे| पर अन्य ब्राह्मणों से मेरा कोई प्रयोजन न था| मैं प्रायः ब्राम्हणों को अपमान भी कर देता था| मेरे इस व्यवहार से सभी ब्राह्मण क्रुद्ध हो गये और उन्होंने मुझे शाप दे दिया-‘तू अत्यन्त निर्दयी बाघ होगा, क्योंकि तेरे द्वारा ब्राह्मणों का महान् अनादर हो रहा है| तुझे किसी बात का स्मरण भी न रहेगा|’

विप्रवर! वे सभी ब्राह्मण वेद के पारगामी विद्वान थे| उनका घोर शाप मुझे लग गया| मुने! जब ब्राह्मणों ने शाप दिया तो मैं उनके पैरों पर गिर पड़ा तथा उनसे कृपापूर्वक क्षमा की भीख माँगी| मुझ पर उनकी कृपादृष्टि हो गयी| अतएव उन्होंने मेरे उद्धार की बात बताते हुए-कहा-‘प्रत्येक छठे दिन मध्यान्हकाल में तुझे जो कोई मिले, उसे तू खा जाना-वह तेरा आहार होगा| जब तुझे बाण लगेगा और उसके आघात से तेरे प्राण कण्ठ में आ जायँ, उस समय किसी ब्राह्मण के मुख से जब ‘ॐ नमो नारायणा’ यह मन्त्र तेरे कानों में पड़ेगा, तब तुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जायगी-इसमें कोई संशय नहीं, मुने! मैंने दूसरे के मुख से भगवान् विष्णु का यह नाम सुना हिया| जिसके परिणाम स्वरूप मुझे ब्रम्हाद्वेषी को भी भगवान् नारायण का दर्शन सुलभ हो गया|फिर जो अपने मुँह से ‘ॐ हरये नमः’ इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए प्राणों का त्याग करता है, वह परम पवित्र पुरुष जीते-जी ही मुक्त है| मैं भुजा उठाकर बार-बार कहता हूँ-यह सत्य है, सत्य है और निश्चय ही सत्य है| ब्राह्मण चलते-फिरते देवता हैं| भगवान् पुरुषोत्तम कूटस्थ पुरुष हैं|’

ऐसा कहकर शुद्ध अन्तःकारण वाला वह बाघ (दिव्य पुरुष) स्वर्ग चला गया और आरुणि भी बाघ के पंजे से छूटकर व्याध से कहने लगे-‘आज बाघ मुझे खाने के लिये उद्यत हो गया था| ऐसे अवसर पर तुमने मेरी रखा की है| अतएव उत्तम व्रत का पालन करने वाले वत्स! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, तुम मुझसे वर माँगो|’

व्याध ने कहा-‘ब्राह्मणदेव! मेरे लिये यही वर पर्याप्त है, जो आप प्रेमपूर्वक मुझसे बातें कर रहे हैं| भला,आप ही बताइये, इससे अधिक वर लेकर मुझे करना ही क्या है?’

आरुणि ने कहा-‘व्याध! तुम्हारी तपस्या करने की इच्छा थी, अतएव तुमने मुझसे प्रार्थना की थी, किंतु अनघ! उस समय तुम में अनेक प्रकार के पाप थे| तुम्हारा रूप बड़ा भयंकर था, परन्तु अब तुम्हारा अन्तःकरण परम पवित्र हो गया है, क्योंकि देविका नदी में स्नान करने, मेरा दर्शन करने तथा चिरकाल तक भगवान् विष्णु का नाम सुनने से तुम्हारे पाप नष्ट हो गये हैं, इसमें कोई संशय नहीं| साधो! अब मेरा यह एक वर स्वीकार कर लो कि तुम अब यही रहकर तपस्या करो; क्योंकि तुम इसके लिये बहुत पहले से इच्छुक भी थे|’

इस प्रकार नारायण-मन्त्र के प्रभाव से पापरहित हुआ व्याध आरुणि मुनि की आज्ञा से वहीं रहकर तप करने लगा|

How to secure WhatsApp


How to secure WhatsApp

Here are some great tips for secure whatsapp that I found

Two-Step Verification


Two-Step Verification allows you to add an extra level of security to your WhatsApp account, which will exponentially increase your security level. To enable it, go to the Account menu and select two-step verification. You can then add a 6-digit code, whuch you will need to be input any time WhatsApp is verified on a new phone. As well as this, you can also set up an alternative email address so WhatsApp can send you a link if this feature is ever deactivated.

Lock WhatsApp

WhatsApp doesn’t have a lock function, surprisingly, but there are plenty of third party apps available to get the job done for you. Think about all of the sensitive information that you send over WhatsApp. WhatsApp’s end-to-end encryption might keep this data safe while we have the phone but if we lose it or it is stolen this information ends up in the hands of a complete stranger. Check out Messenger and Chat Lock if you don’t want this to happen to you.

Deactivate your Account on a Lost/Stolen Phone

If it is too late for you to do number 2 and you’ve already lost your phone this one could be a lifesaver. If you want to deactivate your WhatsApp account on a lost or stolen mobile phone, you’re going to have to email WhatsApp to let them know. Send an email to support@whatsapp.com with the subject line – Lost/Stolen: Please deactivate my account (insert your phone number). It is very important that your phone number includes all the correct international dialing codes.

Turn On Security Notifications

When a new phone or laptop accesses an existing chat, a new security code is generated for both phones. And WhatsApp can send a notification when the security code changes. This way, you can check the encryption with your friend over a different messenger, ensuring its security.

घर में सुख समृद्धि आती है इस चौपाई से

!! जब ते राम ब्याही घर आये, नित नव मंगल मोद बधाये!!

!!भुवन चारी दस बूधर भारी, सूकृत मेघ वर्षहिं सूखवारी !!

!!रिद्धी सिद्धी संपति नदी सूहाई , उमगि अव्धि अम्बूधि तहं आई!!

!!मणिगुर पूर नर नारी सुजाती, शूचि अमोल सुंदर सब भाँति !!

!! कही न जाई कछू इति प्रभूति , जनू इतनी विरंची करतुती !!

!!सब विधि सब पूरलोग सुखारी, रामचन्द्र मुखचंद्र निहारी!!

!! जब ते राम ब्याही घर आये, नित नव मंगल मोद बधाये!!

यह चौपाई श्री तुलसीदासकृत *रामचरितमानस* के दूसरे सोपन *श्री अयोध्याकाण्ड* में वर्णित है !यह चौपाई श्री राम जी तथा सीता माता के विवाहोपरान्त श्री अयोध्या धाम आने के समय की है !

*एसी मान्यता है इस चौपाई से घर में सुख समृद्धि आती है ।*

राम राम

Friday, 30 November 2018

Benefits of Japa

If you utter the word “exceta” or “urine” when your friend is taking his meals, he may at once vomit his food. If you think of “Garam Pakoda” , “hot Pakoda”, your tongue will get salivation. There is a Sakti in every word. When such is the case with ordinary words, how much more power or Sakti should there be in the Name of God – HARI, RAMA, SIVA, or KRISHNA? Repetition or thinking of His Name produces a tremendous influence on the mind. It transforms the mental substance, “Chitta”, overhauls the viciouos old Samskaras in the mind, transmutes the Asuric or diabolical nature and brings the devotee face to face with God. There is no doubt about this. O skeptics and scientific atheists! Wake up! Open your eyes. Chant His Name always. Sing. Do Kirtan.


It is only “Nama-Smarana” that is free from difficulties and troubles. It is easy, comfort-giving and simple. It is said to be the “head”, the “King” of all Sadhanas (means to God-realisation).

Thursday, 29 November 2018

नाम संकीर्तन - हरे कृष्ण महामंत्र ..

कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा जीव के उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है|

बृहन्नार्दीय पुराण में आता है–

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं|

कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||

कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है| हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है!

कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं: कलियुग में तो स्वयं कृष्ण ही हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं| केवल हरिनाम से ही सारे जगत का उद्धार संभव है–

कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार |

नाम हइते सर्व जगत निस्तार|| – चै॰ च॰ १.१७.२२

पद्मपुराण में कहा गया है–

नाम: चिंतामणि कृष्णश्चैतन्य रस विग्रह:|

पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तोसभिन्नत्वं नाम नामिनो:||

हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है| हरिनाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व दिव्यता के आगार हैं |

हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं|हरि तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है| जो कृष्ण हैं– वही कृष्ण नाम है| जो कृष्ण नाम है– वही कृष्ण हैं|



कृष्ण के नाम का किसी भी प्रामाणिक स्त्रोत से श्रवण उत्तम है, परन्तु शास्त्रों एवं श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र ही बताया गया है ।

कलियुग में इस महामंत्र का संकीर्तन करने मात्र से प्राणी मुक्ति के अधिकारी बन सकते हैं। कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत (१२.३.५१) का कथन है- यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुगमें यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापरयुगमें पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफलश्रीहरिके नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥ – श्रीरामरक्षास्त्रोत्रम्

भगवान शिव ने कहा, ” हे पार्वती !! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नामों का जप करता हूँ, और इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ । रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है । – रामरक्षास्त्रोत्र



ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है :

सहस्त्र नाम्नां पुण्यानां, त्रिरा-वृत्त्या तु यत-फलम् ।

एकावृत्त्या तु कृष्णस्य, नामैकम तत प्रयच्छति ॥

विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम ( पुण्य ), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।

भक्तिचंद्रिका में महामंत्र का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित है-बत्तीस अक्षरों वाला नाम- मंत्र सब पापों का नाशक है, सभी प्रकार की दुर्वासनाओंको जलाने के अग्नि-स्वरूप है, शुद्धसत्त्वस्वरूप भगवद्वृत्ति वाली बुद्धि को देने वाला है, सभी के लिए आराधनीय एवं जप करने योग्य है, सबकी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस महामंत्र के संकीर्तन में सभी का अधिकार है। यह मंत्र प्राणिमात्र का बान्धव है, समस्त शक्तियों से सम्पन्न है, आधि-व्याधि का नाशक है। इस महामंत्र की दीक्षा में मुहूर्त्त के विचार की आवश्यकता नहीं है। इसके जप में बाह्यपूजा की अनिवार्यता नहीं है। केवल उच्चारण करने मात्र से यह सम्पूर्ण फल देता है। इस मंत्र के अनुष्ठान में देश-काल का कोई प्रतिबंध नहीं है।

यजुर्वेद के कलि संतारण उपनिषद् में आता है–

द्वापर युग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा- आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजी के द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी ने बताया-

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं |

नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते ||

अर्थात : सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में क्लेश का नाश करने में सक्षम है|

अथर्ववेद के चैतन्योपनिषद में आता है–

स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति |

अर्थात : भगवन गौरचन्द्र सदैव महामंत्र का जप करते हैं जिसमे पहले ‘हरे’ नाम, उसके बाद ‘कृष्ण’ नाम तथा उसके बाद ‘राम’ नाम आता है| ऊपर वर्णित क्रम के अनुसार महामंत्र का सही क्रम यही है की यह मंत्र ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण…’ से शुरू होता है |

पद्मपुराण में वर्णन आता है–




द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं |

प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत् ||

अर्थात : जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं– उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है |

विष्णुधर्मोत्तर में लिखा है कि श्रीहरि के नाम-संकीर्तन में देश-काल का नियम लागू नहीं होता है। किसी भी प्रकार की अशुद्ध अवस्था में भी नाम-जप को करने का निषेध नहीं है। श्रीमद्भागवत महापुराणका तो यहां तक कहना है कि जप-तप एवं पूजा-पाठ की त्रुटियां अथवा कमियां श्रीहरिके नाम- संकीर्तन से ठीक और परिपूर्ण हो जाती हैं। हरि-नाम का संकीर्त्तन ऊंची आवाज में करना चाहिए |

जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिक:।

आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतृन्पुनातपच॥

अर्थात : हरि-नाम को जपने वाले की अपेक्षा उच्च स्वर से हरि-नाम का कीर्तन करने वाला अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि जपकर्ता केवल स्वयं को ही पवित्र करता है, जबकि नाम- कीर्तनकारी स्वयं के साथ-साथ सुनने वालों का भी उद्धार करता है।

हरिवंशपुराण का कथन है-

वेदेरामायणेचैवपुराणेभारतेतथा।

आदावन्तेचमध्येचहरि: सर्वत्र गीयते॥

वेद , रामायण, महाभारत और पुराणों में आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र श्री हरि का ही गुण- गान किया गया है।