Friday, 30 November 2018

Benefits of Japa

If you utter the word “exceta” or “urine” when your friend is taking his meals, he may at once vomit his food. If you think of “Garam Pakoda” , “hot Pakoda”, your tongue will get salivation. There is a Sakti in every word. When such is the case with ordinary words, how much more power or Sakti should there be in the Name of God – HARI, RAMA, SIVA, or KRISHNA? Repetition or thinking of His Name produces a tremendous influence on the mind. It transforms the mental substance, “Chitta”, overhauls the viciouos old Samskaras in the mind, transmutes the Asuric or diabolical nature and brings the devotee face to face with God. There is no doubt about this. O skeptics and scientific atheists! Wake up! Open your eyes. Chant His Name always. Sing. Do Kirtan.


It is only “Nama-Smarana” that is free from difficulties and troubles. It is easy, comfort-giving and simple. It is said to be the “head”, the “King” of all Sadhanas (means to God-realisation).

Thursday, 29 November 2018

नाम संकीर्तन - हरे कृष्ण महामंत्र ..

कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा जीव के उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है|

बृहन्नार्दीय पुराण में आता है–

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं|

कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||

कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है| हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है!

कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं: कलियुग में तो स्वयं कृष्ण ही हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं| केवल हरिनाम से ही सारे जगत का उद्धार संभव है–

कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार |

नाम हइते सर्व जगत निस्तार|| – चै॰ च॰ १.१७.२२

पद्मपुराण में कहा गया है–

नाम: चिंतामणि कृष्णश्चैतन्य रस विग्रह:|

पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तोसभिन्नत्वं नाम नामिनो:||

हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है| हरिनाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व दिव्यता के आगार हैं |

हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं|हरि तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है| जो कृष्ण हैं– वही कृष्ण नाम है| जो कृष्ण नाम है– वही कृष्ण हैं|



कृष्ण के नाम का किसी भी प्रामाणिक स्त्रोत से श्रवण उत्तम है, परन्तु शास्त्रों एवं श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र ही बताया गया है ।

कलियुग में इस महामंत्र का संकीर्तन करने मात्र से प्राणी मुक्ति के अधिकारी बन सकते हैं। कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत (१२.३.५१) का कथन है- यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुगमें यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापरयुगमें पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफलश्रीहरिके नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥ – श्रीरामरक्षास्त्रोत्रम्

भगवान शिव ने कहा, ” हे पार्वती !! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नामों का जप करता हूँ, और इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ । रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है । – रामरक्षास्त्रोत्र



ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है :

सहस्त्र नाम्नां पुण्यानां, त्रिरा-वृत्त्या तु यत-फलम् ।

एकावृत्त्या तु कृष्णस्य, नामैकम तत प्रयच्छति ॥

विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम ( पुण्य ), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।

भक्तिचंद्रिका में महामंत्र का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित है-बत्तीस अक्षरों वाला नाम- मंत्र सब पापों का नाशक है, सभी प्रकार की दुर्वासनाओंको जलाने के अग्नि-स्वरूप है, शुद्धसत्त्वस्वरूप भगवद्वृत्ति वाली बुद्धि को देने वाला है, सभी के लिए आराधनीय एवं जप करने योग्य है, सबकी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस महामंत्र के संकीर्तन में सभी का अधिकार है। यह मंत्र प्राणिमात्र का बान्धव है, समस्त शक्तियों से सम्पन्न है, आधि-व्याधि का नाशक है। इस महामंत्र की दीक्षा में मुहूर्त्त के विचार की आवश्यकता नहीं है। इसके जप में बाह्यपूजा की अनिवार्यता नहीं है। केवल उच्चारण करने मात्र से यह सम्पूर्ण फल देता है। इस मंत्र के अनुष्ठान में देश-काल का कोई प्रतिबंध नहीं है।

यजुर्वेद के कलि संतारण उपनिषद् में आता है–

द्वापर युग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा- आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजी के द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी ने बताया-

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं |

नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते ||

अर्थात : सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में क्लेश का नाश करने में सक्षम है|

अथर्ववेद के चैतन्योपनिषद में आता है–

स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति |

अर्थात : भगवन गौरचन्द्र सदैव महामंत्र का जप करते हैं जिसमे पहले ‘हरे’ नाम, उसके बाद ‘कृष्ण’ नाम तथा उसके बाद ‘राम’ नाम आता है| ऊपर वर्णित क्रम के अनुसार महामंत्र का सही क्रम यही है की यह मंत्र ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण…’ से शुरू होता है |

पद्मपुराण में वर्णन आता है–




द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं |

प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत् ||

अर्थात : जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं– उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है |

विष्णुधर्मोत्तर में लिखा है कि श्रीहरि के नाम-संकीर्तन में देश-काल का नियम लागू नहीं होता है। किसी भी प्रकार की अशुद्ध अवस्था में भी नाम-जप को करने का निषेध नहीं है। श्रीमद्भागवत महापुराणका तो यहां तक कहना है कि जप-तप एवं पूजा-पाठ की त्रुटियां अथवा कमियां श्रीहरिके नाम- संकीर्तन से ठीक और परिपूर्ण हो जाती हैं। हरि-नाम का संकीर्त्तन ऊंची आवाज में करना चाहिए |

जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिक:।

आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतृन्पुनातपच॥

अर्थात : हरि-नाम को जपने वाले की अपेक्षा उच्च स्वर से हरि-नाम का कीर्तन करने वाला अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि जपकर्ता केवल स्वयं को ही पवित्र करता है, जबकि नाम- कीर्तनकारी स्वयं के साथ-साथ सुनने वालों का भी उद्धार करता है।

हरिवंशपुराण का कथन है-

वेदेरामायणेचैवपुराणेभारतेतथा।

आदावन्तेचमध्येचहरि: सर्वत्र गीयते॥

वेद , रामायण, महाभारत और पुराणों में आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र श्री हरि का ही गुण- गान किया गया है।